बीजेपी (BJP) अपना विशिष्ट और सुनियोजित एजेंडा लेकर चल रही है जिसमें अब तक सर्वमान्य रहे राष्ट्रपुरुषों का तिरस्कार और उनकी जगह अपनी विचारधारा के नेताओं को महिमामंडित करना शामिल है. सत्ता हाथ में आते ही मनमानी शुरू हो जाती है और ऐसे उल्टे-सीधे कदम उठाए जाते हैं जिनका दूर-दूर तक कोई औचित्य या स्वीकार्यता नहीं है. राजस्थान में भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में नई सरकार बनते ही बीजेपी की संकीर्ण विचारधारा सामने आ गई.
मंत्री बने अविनाश गहलोत के पदभार ग्रहण के दौरान सचिवालय में महात्मा गांधी और संविधान निर्माता डा. बाबासाहेब आंबेडकर की तस्वीरें गायब पाई गईं. उनकी जगह दीवार पर आरएसएस के संस्थापक डा. केशव बलिराम हेडगेवार और द्वितीय सरसंघ चालक माधव सदाशिव गोलवलकर की तस्वीरें लगी थीं. इसे लेकर कांग्रेस भड़क गई. उसने सोशल मीडिया पर बयान जारी करते हुए कहा कि संविधान की शपथ लेकर मंत्री बने लेकिन कुर्सी पर बैठते ही संविधान निर्माता को हटाकर आरएसएस के संस्थापक को ले आए.
बापू-नेहरू नापसंद
बीजेपी में वही नेता निष्ठावान एवं विश्वसनीय माना जाता है जो आरएसएस का स्वयंसेवक या प्रचारक रहा हो. यही वजह है कि संघ से कोई ताल्लुक नहीं रखनेवाले यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा हाशिये पर डाल दिए गए थे. जसवंत सिंह और ब्रजेश मिश्र यदि ऊंचे पदों पर रहे तो अटलबिहारी वाजपेयी से व्यक्तिगत मित्रता के कारण अन्यथा संघ बैकग्राउंड का नहीं होने के कारण उन्हें बीजेपी के लोग पसंद नहीं करते थे. संघ के प्रति पूर्ण निष्ठा बीजेपी के किसी भी नेता के लिए अनिवार्य है. उसके दिमाग में वही सीख रहती है जो संघ की शाखाओं या उसके द्वारा संचालित शिक्षा संस्थाओं में दी जाती है.
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मिसाल के तौर पर महात्मा गांधी और नेहरू का अंध विरोध और नाथूराम गोडसे का महिमामंडन! यही वजह है कि कितने ही बीजेपी नेता गांधी की तीखी आलोचना करते हैं और देश की सारी समस्याओं के लिए नेहरू को दोषी करार देते हैं. साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर, साध्वी प्राची, साक्षी महाराज, कालीचरण महाराज आदि ने महात्मा गांधी के खिलाफ जहर उगलने में कमी नहीं की. बीजेपी से जुड़ा सोशल मीडिया नेहरू को अय्याश बताने में भी पीछे नहीं रहा. अपनी लकीर तो बड़ी कर नहीं सकते लेकिन दूसरे की बड़ी लकीर को मिटाकर छोटा करने की कोशिश जरूर करते हैं. हिंदू राष्ट्रवाद पनपाने में उदारवादी गांधी-नेहरू व कांग्रेस बाधक रही, इसलिए उस पर संघ व बीजेपी का पुराना आक्रोश है.
आरएसएस से जुड़े किसी भी व्यक्ति के घर में महात्मा गांधी की तस्वीर कभी नहीं मिलेगी. वहां हेडगेवार, गोलवलकर का चित्र रहता है. डा. आंबेडकर ने पिछड़े वर्ग का उत्थान किया व आरक्षण दिलवाया इसलिए वह भी संघ की पसंद न बन सके. घरों में चाहे जो तस्वीर लगाई जाए लेकिन मंत्री के दफ्तर में गांधी और डा. आंबेडकर की तस्वीर तो रहनी ही चाहिए. बापू के नेतृत्व में देश ने आजादी हासिल की और संविधान की प्रस्तुति में डा. आंबेडकर का योगदान रहा. इनकी उपेक्षा क्यों की जानी चाहिए? संघ से संबंधित मराठी पुस्तकों व पत्र-पत्रिकाओं में महात्मा गांधी की हत्या को ‘गांधी वध’ लिखा जाता है.
सरदार पटेल ने संघ पर बैन लगाया था
सरदार पटेल को बीजेपी ने बड़ी चतुराई से हाईजैक किया. यह तथ्य भुला दिया गया कि महात्मा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने ही आरएसएस पर सख्त प्रतिबंध लगाया था और संघ के सारे बड़े पदाधिकारियों को जेल भिजवाया था. जब संघ के नेताओं ने अभिवचन दिया कि उनका संगठन राजनीति से दूर रहकर सिर्फ सांस्कृतिक संगठन बना रहेगा तब उन्हें रिहा किया गया. अभी तो मंत्री के दफ्तर में हेडगेवार और गोलवलकर की तस्वीरें लगी हैं. आगे चलकर कुछ वर्ष बाद करेंसी नोटों पर इनकी तस्वीरें भी छपने लगें तो आश्चर्य नहीं होगा. 2025 आरएसएस का शताब्दी वर्ष होगा. इसलिए अपने नेताओं का महिमामंडन करते हुए, नेहरू के बाद गांधी को भी हाशिये पर डाला जा सकता है.