जो लोग राजनीतिक कारणों से सीएए (CAA) का विरोध कर रहे हैं, वे इस हकीकत से कैसे आंख चुरा सकते हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू कितने जुल्मो-सितम के शिकार हैं। 1947 में जब भारत का विभाजन हुआ था तब पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी लगभग 24 प्रतिशत थी लेकिन आज यह 1 प्रतिशत भी नहीं रह गई है। तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में हिंदुओं की जनसंख्या तब 30 प्रतिशत थी जो अब सिर्फ 7 प्रतिशत रह गई है। आखिर हिंदू गायब कहां हो गए?
अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में मानवाधिकार संगठनों की अनुपस्थिति है। हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार, इन देशों में हिंदू लड़कियों का अपहरण और जबरन धर्म परिवर्तन कराना आम बात है। पुलिस इसमें कोई दखल नहीं देती। 2004 से 2018 तक पाकिस्तान के अकेले सिंध प्रांत में 7,430 हिंदू लड़कियों का अपहरण हुआ। गुंडे उन्हें बाजार या घर कहीं से भी उठा ले जाते हैं। इनमें कितनी ही नाबालिग रहती हैं।
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वास्तविक संख्या इससे भी अधिक हो सकती है। प्रति वर्ष लगभग 1,000 हिंदू व ईसाई लड़कियों का अपहरण कर उनका धर्मांतरण कर जबरन शादी की जाती है। पाकिस्तान और बांग्लादेश ही नहीं, बंगाल में भी यही हाल है। 1979 में सुंदरबन के मरीचझामी में दलितों का नरसंहार किया गया था। इस वर्ष संदेशखाली में दरिंदगी की गई। बंगाल में स्थानीय पुलिस भी अत्याचारियों का साथ देती है।
भारत में 5,746 योग्य परिवारों ने सीएए के अंतर्गत नागरिकता पाने का आवेदन दिया है जिनमें से 70 फीसदी दलित हैं। दलितों के नाम पर राजनीति करनेवाले विपक्षी नेता इस तथ्य को क्यों नहीं देख रहे हैं? हिंदुओं, सिखों, जैनियों व बौद्धों के लिए भारत उनका स्वाभाविक देश है। सीएए उन्हें न्याय प्रदान करता है।