खुद को इंदिरा गांधी का ‘तीसरा बेटा’ बतानेवाले कांग्रेस नेता कमलनाथ (Congress leader Kamal Nath) न इधर के रहे, न उधर के। राजनीतिक समीकरण को बनते बिगड़ने में देर नहीं लगती। कांग्रेस से कमलनाथ का नाता उस समय से है जब वह संजय गांधी के दोस्त हुआ करते थे। विमान हादसे में संजय के निधन के बाद वह राजीव गांधी के करीब आ गए। लगभग 4 दशकों तक कांग्रेस में रहने के बाद अचानक उन्हें भगवा भाने लगा। वक्त की बयार ही कुछ ऐसी होती है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की हालत कितने ही दशकों से बेहद पतली रही है। प्रदेश में सिर्फ छिंदवाड़ा ही ऐसी सीट है जहां कांग्रेस जीत पाती है।
1977 के लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश की सारी सीटों पर कांग्रेस धराशायी हो गई थी लेकिन छिंदवाड़ा से कांग्रेस के गार्गीशंकर मिश्रा लोकसभा चुनाव जीते थे। आशय यह है कि राज्य में छिंदवाड़ा को अपवाद माना जाता रहा है। कोलकाता से आए कमलनाथ ने छिंदवाड़ा को अपना घर बना लिया। जिला भले ही पिछड़ा हो, लेकिन शिकारपुर में जहां कमलनाथ की कोठी हैं वहां दशकों पहले से हवाई सफर के लिए एयर ्ट्रिरप बनी हुई है।
अधर में लटक गए
महर्षि विश्वामित्र ने अपने योगबल से राजा त्रिशंकु को सदेह स्वर्ग भेजा था लेकिन देवताओं ने राजा को एंट्री नहीं दी। विश्वामित्र वापस लेने को तैयार नहीं थे इसलिए त्रिशंकु अधर में ही लटका रह गया। बीजेपी के बड़े नेताओं को अब कमलनाथ को पार्टी में लेने की रूचि नहीं रह गई। कांग्रेस के लिए भी वह शक के दायरे में आ गए उनकी पार्टी निष्ठा पर सवालिया निशान लग गया।
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एकतरफा शर्त मानने को भाजपा राजी नहीं
बताया जाता है कि 3 लोकसभा सीट देने और आम चुनाव के पहले राज्यपाल बनाए जाने की कमलनाथ की एकतरफा शर्त के सामने बीजेपी के रणनीतिकार नहीं झुके। वैसे माना जा रहा था कि कमलनाथ को अपने खेमे में लाकर कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का बीजेपी का इरादा था इससे हिंदी पट्टी में माहौल एकपक्षीय हो जाता। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद मध्यप्रदेश कांग्रेस का एक बड़ा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बीजेपी के पाले में आ जाता लेकिन सौदेबाजी जमती नजर नहीं आई।
यह भी कहा जा रहा था कि 20 विधायक बीजेपी में शामिल हो सकते हैं लेकिन वास्तविकता में आंकड़ा इससे काफी कम था। उधर गांधी परिवार ने भी फोन पर कमलनाथ को समझाइश दी है। कमलनाथ ने प्रियंका गांधी से व्यक्तिगत तौर पर आपसी संवाद स्थापित करने के लिए हामी भरी है। उधर बीजेपी की हिचक इसलिए भी है क्योंकि 1984 के दंगों को लेकर सिख समुदाय में कमलनाथ के प्रति नाराजगी है। इसलिए भी बीजेपी नेतृत्व कोई जोखिम उठाना नहीं चाहता। यह वक्त ऐसा नाजुक है जब पंजाब की धरती से फिर एक बार किसान आंदोलन शुरू हो गया है। कमलनाथ को बीजेपी में लेने का मतलब आग में घी डालना होगा।
कांग्रेस का सख्त रुख
कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने हिदायत दी है कि कमलनाथ को मनाने की कोशिश न की जाए। कांग्रेस को छिंदवाड़ा सीट गंवाना मंजूर है लेकिन यह नामंजूर है कि कमलनाथ व उनके पुत्र नकुलनाथ बीजेपी के हाथों में खेलें। कमलनाथ भी दुविधा में है कि यदि उन्होंने कांग्रेस छोड़ना तय किया तो कितने विधायक उनके साथ आएंगे।