आज की खास खबर | जागरूक अदालत, जनहित में फैसला, अकोला उपचुनाव रद्द

जागरूक अदालत, जनहित में फैसला, अकोला उपचुनाव रद्द

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यह सर्वमान्य है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए चुनाव होते रहना चाहिए लेकिन एक से दूसरे चुनाव के बीच निश्चित समयावधि भी होना चाहिए और नियमानुसार उनका पालन होना चाहिए। ऐसा न करते हुए अपनी मर्जी से कभी भी चुनाव या उपचुनाव करा लेना कदापि उचित नहीं कहा जा सकता। बाम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इस मुद्दे पर जनहित में अच्छा एवं उपयुक्त फैसला दिया है। मुख्य चुनाव आयुक्त ने अधिसूचना जारी कर कहा था कि अकोला (पश्चिम) के पूर्व विधायक गोवर्धन शर्मा के निधन के कारण रिक्त हुई विधानसभा की सीट को भरने के लिए 26 अप्रैल को उपचुनाव होगा। लंबे समय से यह सीट खाली थी लेकिन इस पर उपचुनाव कराने की अब सूझी। इस उपचुनाव को अवैध और जनहित के विरुद्ध होने की दलील देते हुए अकोला के विवेक पारस्कर के मार्गदर्शन में अनिल दुबे ने बाम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में गत 20 मार्च को जनहित याचिका दायर की। 26 मार्च को याचिका पर सुनवाई कर न्यायमूर्ति अनिल किलोर व न्यायमूर्ति एनएस जवलकर की पीठ ने फैसला सुनाया और अकोला (पश्चिम) का उपचुनाव रोकने का आदेश दिया।

याचिकाकर्ता की मजबूत दलील

याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि जब मुख्य चुनाव में एक वर्ष से भी कम का समय शेष रह गया हो तो उपचुनाव नहीं कराया जा सकता। महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव इसी वर्ष 2024 में होनेवाला है और सिर्फ 5-6 महीने दूर है तो फिर अकोला (पश्चिम) में उपचुनाव कराने की क्या आवश्यकता है? इस उपचुनाव से मतदाताओं पर व्यर्थ का बोझ डाला जा रहा है और साथ ही व्यवस्थाओं पर अनावश्यक श्रम लादा जा रहा है। जब एक वर्ष का समय बीतने पर भी चंद्रपुर और पुणे की खाली पड़ी हुई लोकसभा सीटों पर उपचुनाव नहीं हुए तो अकोला में विधानसभा उपचुनाव क्यों होना चाहिए? याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि अकोला में उपचुनाव कराने का मतलब जनता के पैसों की बर्बादी करना है। यह व्यर्थ की फिजूलखर्ची है। सिर्फ कुछ माह के लिए विधायक निर्वाचित हो और फिर नए सिरे से विधानसभा चुनाव लड़े, इसमें कौन सा तुक है? उपचुनाव में जीतने वाले विधायक का कार्यकाल अति संक्षिप्त रहेगा। ऐसे में उपचुनाव का क्या प्रयोजन रह जाएगा?

चुनाव आयोग को भी विचार करना चाहिए था

जब विधायक शर्मा के निधन से अकोला (पश्चिम) की सीट रिक्त हुई थी तो उसके 6 माह के भीतर उपचुनाव करा लिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा कोई फैसला नहीं लिया गया। वक्त बीतता चला गया। अब जब लोकसभा चुनाव का समय आया तो साथ में अकोला (पश्चिम) का उपचुनाव कराने का निर्णय चुनाव आयोग ने लिया। यह विचार नहीं किया गया कि इसी वर्ष महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल भी समाप्त होने जा रहा है। उस वक्त राज्य की सारी विधानसभा सीटों के साथ अकोला (पश्चिम) का निर्वाचन हो जाएगा। केवल चंद महीनों के लिए विधायक चुनने का दूर-दूर तक कोई औचित्य नहीं था। याचिका के तर्कसंगत मुद्दे को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया और उपचुनाव रोकने का न्यायसंगत फैसला दे दिया।

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