इलेक्टोरल बांड (Electoral Bond) के रूप में औद्योगिक घरानों से सबसे मोटा चुनावी चंदा लेने वाली बीजेपी के लिए ए सुप्रीम कोर्ट का फैसला बड़े आघात के रूप में सामने आया है। बांड से मिली रकम से एक-एक पैसे का हिसाब पार्टी को देना होगा। अब तक यह रकम गोपनीय थी जिसकी जानकारी दानदाता, बैंक और चंदा पाने वाली पार्टी को ही रहती थी। जनता को इसकी भनक तक नहीं लगती थी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला चुनावी चंदे पर कस कर मारा गया चाबुक है। इससे यह बात भी खुल जाएगी कि कैसे औद्योगिक घराने करोडों की बेहिसाबी रकम चुपचाप उस पार्टी को चंदे के रूप में देते हैं जिससे उन्हें लाभ मिलने की उम्मीद रहती है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में 5 सदस्यों की खंडपीठ ने सर्वसम्मति से इलेक्टोरल बांड्स योजना को ‘असंवैधानिक’ घोषित करते हुए रद्द कर दिया और दो टूक शब्दों में कहा कि ‘वोट के अधिकार के लिए सूचना का मिलना आवश्यक है’। फैसले के अनुसार, भारतीय चुनाव आयोग को 13 मार्च 2024 तक अपनी वेबसाइट पर इलेक्टोरल बाइस की खरीद का विवरण प्रकाशित करना होगा। 2019 से किस पार्टी को कितना दान मिला है, इसकी जानकारी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को उपलब्ध करानी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर बल दिया कि चूंकि राजनीतिक दलों की चुनावी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका होती है और उन्हें ही चंदा मिलता है, इसलिए नागरिकों को अपने मत प्रयोग के लिए आवश्यक
इलेक्टोरल बांड्स योजना असंवैधानिक थी, क्योंकि यह नागरिकों के सूचना अधिकार का उल्लंघन करती है। एक कंपनी किसी राजनीतिक दल को चंदा देती है और वह सत्ता में आने के बाद ऐसी योजनाएं पारित करने लगता है, जिनसे उस कंपनी को आर्थिक लाभ पहुंचे। इसलिए नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि कौन-सी कंपनी किस राजनीतिक दल को कितना चंदा देकर, कितना फायदा उठा रही है और उसका उन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? इलेक्टोरल बांड्स योजना के तहत यह लेन-देन गोपनीय रखा जा रहा था, जो एक तरह से नागरिकों के साथ ठगी करने जैसा था। अब इस पर कुछ तो अंकुश लगेगा।
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि इलेक्टोरल बांड्स जारी करने वाले बैंक अब इन बाँड्स को जारी नहीं कर सकेंगे। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को इलेक्टोरल बांइस द्वारा दिए गए दान और किस राजनीतिक पार्टी को कितना दान फिला, यी जानकारी उपलब्ध करानी होगी। देश में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया दल की कुल 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉड्स जारी करने का अधिकार करोड़ मिला हुआ था।
रुपये ये बांड 1,000 रुपये से लेकर 1 तक की तय रकम की शक्ल में विधारित समय के लिए जारी किए जाते थे, जिन पर ब्याज नहीं मिलता था। इन्हें समय-सीमा के भीतर खरीदा जा सकता था। ज्ञात हो कि 2018 के बाद से सियासी आम नागरिकों और कंपनियों को यह इजाजत थी कि वह यह बांड खरीदकर राजनीतिक पार्टियों को चंदे के रूप में दे सकते थे। दानकर्ता का नाम ही नहीं, बल्कि वह किस दल को यह बांड देगा, इसकी जानकारी भी गुप्त रखी जाती थी, दान मिलने के 15 दिन के भीतर सियासी पार्टियों को बांड्स भुनाने पड़ते थे और इसकी सूचना चुनाव आयोग को देनी होती थी।
इलेक्टोरल बांड्स के माध्यम से केवल वही पंजीकृत राजनीतिक दल चंदा ले सकते थे, जिन्होंने पिछले संसदीय या विधानसभा चुनाव में कम से कम । प्रतिशत बोट हासिल के किया हो, यह योजना आने के साथ ही निरंतर विवादों मेट से में रही भरे लोकतंत्र का खिलवाड़ बताकर सुप्रीम कोर्ट में भी की जिसे लगभग 2 साल बाद यानी अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से सुनना शुरु किया और अब जाकर महत्वपूर्ण फैसला उसने दिया है।
16,000 करोड़ का गुप्त दान
ज्ञात हो कि 2018 के बाद से सियासी पार्टियों को लगभग 16,000 करोड़ रुपये का गुप्त दान दिया जा चुका है, जिसमें से एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), जोकि एक गैर-सरकारी संगठन है, के अनुसार, लगभग 57 प्रतिशत सत्तारूढ़ बीजेपी को मिला है। यह फैसला एडीआर की याचिका पर ही आया है, जिसका कहना है कि इलेक्टोरल बांड्स योजना जैसी गोपनीयता की जरूरत नहीं है, संदेहास्पद दान को केवल पारदर्शिता से कर पा सकता है विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि चुनावी फंडिंग में अपारदर्शिता बड़े दानकर्ताओं द्वारा सरकार को कवर करने जैसा है। चुनावी दान भ्र्ष्टाचार का बड़ा स्त्रोत है।