आज की खास खबर | चीन परस्ती पर आमादा हैं, मालदीव के मोहम्मद मोइज्जू

चीन परस्ती पर आमादा हैं, मालदीव के मोहम्मद मोइज्जू

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– वीना गौतम

प्रधानमंत्री मोदी (PM Narendra Modi) द्वारा लक्षद्वीप (Lakshadweep) की यात्रा पर जाने के लिए भारतीयों को किए गए आह्वान के बाद से भारत और मालदीव (Maldives) के संबंधों में जो खटास आने का सिलसिला शुरू हुआ है, वह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा. पिछले साल चुनावों के पहले ही मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू भारत विरूद्ध प्रोपेगंडा शुरू कर चुके थे, लेकिन लक्षद्वीप की घटना के बाद जब उनके तीन मंत्री, प्रधानमंत्री मोदी और भारत के विरूद्ध क्षुद्र टिप्पणियों पर उतर आये, तो आनन फानन में उन्हें डैमेज कंट्रोल करते हुए मालदीव ने जैसे बर्खास्त किया, उससे लगा कि शायद वह इसकी संवदेनशीलता को समझ चुका है और अब वह चीनपरस्ती की डगर में भारत को उकसाने के लिए आगे नहीं बढ़ेगा.

लेकिन लगता है मालदीव ने अपने पैर पर धोखे में नहीं बल्कि पूरी सोच समझ के साथ कुल्हाड़ी मारने पर आमादा है. इसलिए राष्ट्रपति मोइज्जू ने न केवल चीन की यात्रा पर जाने का निर्णय लिया बल्कि वहां से लौटकर आने के बाद भी एक बार फिर से भारत के विरूद्ध टिप्पणी की कि भारतीय सेना के जवान 15 मार्च 2024 तक मालदीव छोड़ दें.

मालदीव ने भारतीय सैनिकों को इस तरह से मालदीव छोड़ने का अल्टीमेट दिया है, जैसे वह दुनिया को इशारों में बता रहा हो कि भारत ने उसके देश पर सैन्य कब्जा कर रखा है. करीब 50 लाख की आबादी वाले द्वीप देश मालदीव में भारत के बमुश्किल 90 सैनिक, एक टोही विमान और हेलीकाप्टर ही तैनात हैं, जो विशिष्ट समुद्री अध्ययन को अंजाम देते हैं. मगर चीन के इशारे पपर मालदीव ने इस पूरे मामले को ऐसे नैरेटिव में बांधा है मानो भारतीय सैनिकों की वहां मौजूदगी मालदीव की सम्प्रभुता पर सवाल हो. मालदीव की  पर्यटन अर्थव्यवस्था में भारत रीढ़ की हड्डी वाली भूमिका निभाता है बल्कि उसके मौजूदा अस्तित्व और बुनियादी नागरिक सुविधाओं में भी भारत ही सबसे बड़ा मददगार है.

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चंगुल में फंसाता है ड्रैगन

सब चीन की डिप्लोमेसी के चलते हो रहा है. चीन के डॉलरों के लिए अब से पहले ललचाये श्रीलंका को अपने हंबनटोटा बंदरगाह को अगले 99 सालों के लिए चीन के पास गिरवी रखना पड़ा है, क्योंकि इसके विकास में चीन ने जो 1.5 बिलियन डॉलर खर्च किया था, उसकी किस्तें श्रीलंका के लिए देनी भारी हो गई थी. इसी तरह पाकिस्तान भी चीन की विदेशी मुद्रा के लालच में उसके चक्रव्यूह में ऐसे फंसा है कि अब छटपटा रहा है और बाहर निकलने का कोई रास्त नहीं मिल रहा. दरअसल साल 2021 तक चीन का पाकिस्तान पर 67.2 बिलियन डॉलर कर कर्ज चढ़ चुका था. साल 2023 में पाकिस्तान पर चीन के विभिन्न वाणिजिक बैंकों का भी लगभग 8.77 बिलियन डॉलर कर्ज चढ़ चुका था.

पाकिस्तान भी जाल में

श्रीलंका की तरह पाकिस्तान भी चीन को उसके कर्ज की किस्त चुका पाने में असमर्थ हो गया. इसलिए चीन पाकिस्तान में ग्वादर नामक जो बहुमहत्वाकांक्षी बंदरगाह निर्मित कर रहा था, वह जहां का तहां अधूरा पड़ा है. उसका एक हिस्सा जो अब तक शुरु हुआ है, उस पर पूरी तरह से चीन का कब्जा है और सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान, चीन को अपना करीबी दोस्त कहते हुए नहीं थकता, फिर भी चीन बार बार उसकी पीठ पर चाबुक चला रहा है कि कैसे भी करके उसके कर्ज की किस्ते देना शुरू करे. इससे न सिर्फ पाकिस्तान आर्थिक मामले में खोखला हो चुका है बल्कि बलुचिस्तान प्रांत में चीन की इस दादागिरी वाली उपस्थिति से गृहयुद्ध सी नौबत बनती जा रही है.

चीन छोटे छोटे पड़ोसी देशों को अपनी दौलत से ललचवाता है और फिर जब वह उसकी लालच की गिरफ्त में आ जाते हैं, तो उन्हें पकड़कर निचोड़ लेता है. चीन ने नेपाल में भी किया है. नेपाल के कम्युनिस्ट सरकार के चीनी झुकाव को देखते हुए चीन ने उसे पूरे नेपाल में रेल नेटवर्क बिछाने का सब्जबाग दिखा दिया. यहां तक कि इस नेटवर्क के शुरू किए जाने का कागजी ऐलान भी हो गया. मगर जब चीन को महसूस हुआ कि नेपाल के पास लिए गए कर्ज को वापस देने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है, तो बिना कोई सफाई दिए उसने अपने कदम पीछे खींच लिए. 

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