सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा पतंजलि और बाबा रामदेव (Baba Ramdev) के खिलाफ अवमानना प्रकरण में की गई कड़ी टिप्पणियों के कारण चिकित्सा पद्धतियों आयुर्वेद और एलोपैथी के बीच टकराहट विवाद और बहस का मुद्दा बन गई है। चिकित्सा पद्धतियों की यह टकराहट अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि मानवता को आयुर्वेद और एलोपैथी दोनों की आवश्यकता है। यह दोनों पद्धतियां दरअसल एक दूसरे की पूरक हैं। इस दृष्टि से सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव को जो फटकार लगाई है वह बिल्कुल सही है। खुद बाबा रामदेव अनेक बार अपनी विभिन्न बीमारियों के लिए हॉस्पिटलाइज हो चुके हैं। ऐसे में वो एलोपैथी के खिलाफ दुष्प्रचार कैसे कर सकते हैं? दूसरी तरफ अनेक एलोपैथी के चिकित्सक और विशेषज्ञ ऐसे हैं अपने दैनंदिन जीवन में आयुर्वेद को अपनाते हैं। जाहिर है आयुर्वेदिक, एलोपैथिक, होम्योपैथिक तथा यूनानी सभी चिकित्सा पद्धतियों का अपना महत्व है।
ये सभी चिकित्सा पद्धतियां लगातार अपनाई जा रही हैं और इन्होंने परिणाम भी दिए हैं। यूं तो पतंजलि के पहले से देश में अनेक आयुर्वेदिक कंपनियां व्यावसायिक दवाइयां का उत्पादन करती थी लेकिन इन कंपनियों ने कभी एलोपैथी को निशाना नहीं बनाया बाबा रामदेव कई मायनों में सम्मान के पात्र हैं। ऐसे ‘योग-साधक’ को सर्वोच्च अदालत में माफीनामा देना पड़े और न्यायिक पीठ उसे स्वीकार करने की बजाय महज ‘जुबानी जमा खर्च’ करार दे, तो शीर्ष अदालत की इस कड़ी चेतावनी को समझना बेहद जरूरी है।
घातक बीमारियों के स्थायी इलाज का दावा
बाबा की कंपनी ‘पतंजलि आयुर्वेद’ एक लंबे समय से भ्रामक प्रचार करती रही है कि उसके पास ग्लूकोमा, मधुमेह, रक्तचाप, अर्थराइटिस और अस्थमा सरीखी घातक बीमारियों के स्थायी इलाज हैं। दरअसल बाबा रामदेव ही पतंजलि के उत्पादों के सार्वजनिक चेहरा हैं। विज्ञापनों में वह दावे करते देखे जा सकते हैं कि उनकी औषधियां साक्ष्य आधारित, शोध परक और लोगों पर परखी जा चुकी हैं। इन विज्ञापनों के व्यापक प्रभाव भी होते हैं, क्योंकि करोड़ों लोगों की बाबा में आस्था है।
हजारों करोड़ का टर्नओवर
बाबा के दावों को सच मानते हुए असंख्य लोग पतंजलि की दवाएं खरीदते और इस्तेमाल करते हैं। नतीजन आज बाबा की कंपनियों का टर्नओवर हजारों करोड़ रुपए है। पतंजलि दवाओं के प्रचार करने के साथ-साथ बाबा रामदेव आधुनिक चिकित्सा प्रणाली ‘एलोपैथी’ के रामदेव आधुनिक चिकित्सा प्रणाली ‘एलोपैथी’ के खिलाफ विष वमन भी करते रहे हैं। सर्वोच्च अदालत ने इस भ्रामक और गलत प्रचार के लिए बाबा रामदेव को मना भी किया था, लेकिन बाबा और पतंजलि समूह के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण देश की शीर्ष अदालत के निर्देशों का ही उल्लंघन करते रहे हैं। अब बात बाबा के माफीनामे से भी आगे निकल चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी माफी को अस्वीकार कर दिया है।
दोनों प्रणालियों की जरूरत
मौजूदा दौर में आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान को और अधिक प्रासंगिक बना दिया है। योग के साथ यदि प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति अपनी जाए तो उसके बेहतर परिणाम मिलते हैं। केंद्र सरकार भी योग और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा दे रही है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का महिमा मंडन और प्रचार करना तो समझ में आता है लेकिन एलोपैथिक दवाइयों और चिकित्सा पद्धति के खिलाफ अभियान चलाना गलत है। कुल मिलाकर इस तरह का विवाद समाप्त होना चाहिए। मानवता को दोनों चिकित्सा पद्धतियों की जरूरत है।