जिंदगी अनमोल होती है लेकिन पालकों की महत्वाकांक्षा और जेईई व नीट जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं को लेकर बच्चों पर पढ़ाई और टेस्ट के भारी दबाव का नतीजा यह होता है कि वे इसे झेल नहीं पाते और आत्महत्या (Suicide Capital) करने की ओर प्रवृत्त होते हैं. कोटा (Kota) के बहुत से कोचिंग सेंटरों में 1 वर्ष में 29 छात्र-छात्राओं ने खुदकुशी की. बच्चों की रूचि व क्षमता का विचार किए बिना अभिभावक मोटी फीस देकर उन्हें कोटा की किसी कोचिंग संस्था में दाखिला कराते हैं. बड़ी मुश्किल से सीट मिल पाती है.
छात्र पर पालकों और कोचिंग सेंटर दोनों का जबरदस्त मानसिक दबाव बना रहता है. घर से दूर रहकर वे अकेलापन महसूस करते हैं. सुबह से शाम व रात तक घंटो पढ़ाई करनी पड़ती है. बार-बार टेस्ट लिए जाते हैं जिनमें फेल होने या कम अंक लेने पर कड़ी फटकार लगाई जाती है. मनोरंजन और विश्राम के लिए समय नहीं मिलता. छात्रों के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना कर पालक उन्हें कोटा भेजते हैं कि वह जिंदगी में सफलता हासिल कर कुछ बन जाएगा. पालक इसे अपनी साख या प्रतिष्ठा से भी जोड़ लेते हैं.
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छात्र बेचैनी और मानसिक दबाव से जूझते रहते हैं. कितने ही छात्र भरपूर प्रयास करने पर भी सफलता हासिल नहीं कर पाते. विफलता उनका मनोबल तोड़ देती है. इस पीड़ा को अभिभावक, कोचिंग संस्था या नीति निर्धारक समझ नहीं पाते या समझने की जरूरत महसूस नहीं करते. जेईई की तैयारी कर रही नीहारिका नामक लड़की ने आत्महत्या के पूर्व लिाा कि पापा, मैं लूजर हूं सबसे बुरी बेटी हूं. यह मेरा आखिरी आप्शन है. वह एक सिक्योरिटी गार्ड की बेटी और 3 बहनों में सबसे बड़ी थी.
इस वर्ष जनवरी में कोटा में छात्र आत्महत्या की यह दूसरी घटना है यह एक गंभीर मुद्दा है जिसमें छात्रों का समुपदेशन करने की आवश्यकता है. प्रयत्न करने पर सफलता या विफलता में से कुछ भी मिलता है. हौसला कभी कम नहीं होना चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी ने भी ‘परीक्षा पे चर्चा’ में कहा कि प्रतिस्पर्धा और चुनौतियां जीवन में प्रेरणा का काम करती है. तैयारी के छोटे लक्ष्य निर्धारित कर अपने प्रदर्शन में सुधार करना चाहिए.