आज की खास खबर | कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को क्यों सौंपा, अतीत का भूत फिर सामने आया

कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को क्यों सौंपा, अतीत का भूत फिर सामने आया

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विवादास्पद कच्चातिवु द्वीप (Katchatheevu Island) मामले में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ही अंदाज में कांग्रेस पर निशाना तो साधा ही है, इस रोशनी में इससे जुड़े जो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, उन्होंने तमिलनाडु और देश की राजनीति में एक पुरानी बहस को फिर जिंदा कर दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने दरअसल इस मामले में भाजपा की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष के। अन्नामलाई के सूचना के अधिकार आवेदन पर मिली जानकारियों का हवाला देते हुए कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका (Sri Lanka) को सौंपे जाने के लिए कांग्रेस को कसूरवार ठहराया है।
 
उल्लेखनीय है कि कच्चातिवु, रामेश्वरम (भारत) और नेदुनतिवु (श्रीलंका) के मध्य 285 एकड़ में फैला एक छोटा निर्जन द्वीप है, जहां स्थित बीसवीं सदी के एक चर्च की वजह से आगंतुकों की कभी-कभार आमद भले हो, पेयजल के अभाव के चलते स्थायी निवास तकरीबन नामुमकिन है। मध्यकाल की शुरुआत में यह द्वीप श्रीलंका के जाफना साम्राज्य के नियंत्रण में था, लेकिन 17वीं सदी तक यह मदुरई के राजा रामानंद के अधीन आ गया था। ब्रिटिश शासन में यह मंद्रास प्रेसीडेंसी के अधीन था, हालांकि पारंपरिक तौर पर दोनों देशों के मछुआरे इसका उपयोग करते रहे।

आजादी के बाद भी यह द्वीप भारत का हिस्सा रहा, जिस पर श्रीलंका दावा जताता रहा। 1974 में इस मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व श्रीलंका की तत्कालीन राष्ट्रपति सिरिमावो भंडारनायके के मध्य हुए समझौते के तहत यह द्वीप भारत द्वारा स्वेच्छा से श्रीलंका को सौंप दिया गया। तमिलनाडु की तत्कालीन द्रमुक सरकार समझौते से पहले राज्य सरकार से विमर्श न किए जाने को लेकर शुरुआत से ही इसके खिलाफ थी। 1991 में भी राज्य विधानसभा में इसके विरोध में एक प्रस्ताव पारित हुआ और 2008 में भी राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इस फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था।  

दरअसल, इस मामले से जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण पहलू तमिल मछुआरों की आजीविका और उनके सामाजिक ताने-बाने का है। आलम यह है कि आज कच्चातिवु में मछलियां पकड़ने के लिए भारतीय मछुआरों को अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा पार करनी पड़ती है, जिसमें कई बार उन्हें श्रीलंकाई नौसेना का भी सामना करना पड़ता है। खुद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन इसके समाधान के लिए प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख चुके हैं। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले इस संवेदनशील मुद्दे के उठने पर विपक्ष की चिंता समझी जा सकती है, पर अरुणाचल और चीन जैसे मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरने वालों के खिलाफ भाजपा को एक बड़ा मुद्दा जरूर मिल गया है।

 

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