आज की खास खबर | इस्तीफे के तुरंत बाद जज का चुनाव लड़ना अनैतिक

इस्तीफे के तुरंत बाद जज का चुनाव लड़ना अनैतिक

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यह किसी अजूबे से कम नहीं है कि कोलकाता हाइकोर्ट (High Court) के पूर्व जज अभिजीत गंगोपाध्याय (Abhijit Gangopadhyay) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और चीफ जस्टिस टीएस शिवगंगानम को अपना इस्तीफा देने के कुछ घंटे बाद ही राजनीति में आ गए।  उन्होंने घोषणा की कि वह 7 मार्च को बीजेपी में शामिल होंगे।  यह पूछे जाने पर क वह आगामी लोकसभा चुनाव में बंगाल की किस सीट से बीजेपी उम्मीदवार होंगे, उन्होंने कहा कि इसकी जानकारी मैं आप सभी को जरूर दूंगा।  उल्लेखनीय है कि गंगोपाध्याय ने जज रहते हुए टीएमस के खिलाफ फैसले दिए थे।  उन्होंने कहा कि टीएमसी प्रवक्ताओं ने बार-बार मेरी आलोचना की थी। 

उनके घोटाले सामने आ रहे हैं।  मैंने अब राजनीति में उतरने का फैसला किया है।  पूर्व जज ने बीजेपी के प्रति अपना लगाव दिखाते हुए कहा कि यह पार्टी जनता की भलाई के लिए काम करती है।  प्रधानमंत्री मोदी भारत के विकास का जो दृष्टिकोण रखते है उसमें मैं भी सहभागी हूं।  संदेशखाली प्रकरण के बाद गंगोपाध्याय का जज के पद से इस्तीफा देना मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को झटका है।  पहले ही लोकसभा चुनाव ममता के लिए चुनौतीपूर्ण है।  जज के इस्तीफे से यह चुनौती और गहरी हो गई है। 

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राजनीति की राह कठिन

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश गांगुली को रिटायरमेंट के बाद बीजेपी ने राज्यसभा सदस्य मनोनीत कर दिया था लेकिन अभिजीत गंगोपाध्याय राजनीति में अपनी नई भूमिका किस तरह निभाएंगे और लोकसभा चुनाव कैसे लड़ेंगे? चुनावी राजनीत के लिए वह बिल्कुल नौसिखिए है।  बीजेपी का टिकट मिलने के बाद भी बंगाल में टीएमसी का दबदबा देखते हुए चुनाव लड़ना आसान नहीं है। 

ईमानदार और सिद्धांतवादी तो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन भी थे लेकिन चुनाव लड़ने पर हार गए थे।  राजनीति में हर कोई सफल नहीं होता। यूएन में अवर सचिव रह चुके शशि थरूर की बात अलग है जो केरल से चुनाव लड़कर जीत गए थे।  ज्यादा सिांतवादी आदमी राजनीति में नहीं चलता क्योंकि राजनीत में तरह-तरह के फंड जुटाना पड़ता है।  जज होने और नेता बनकर दांवपेच वाली राजनीति करने में बहुत फर्क है। 

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