- संसद के संयुक्त सत्र में पारित होंगे कई संवैधानिक सुधार प्रस्ताव
उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी की शुरुआत के ब्रिटिश इतिहासकार लॉर्ड एक्टन का एक बयान अक्सर राजनीतिक एकाधिकारवाद के संदर्भ में इस्तेमाल में लाया जाता है। यह बयान बताता है कि जैसे-जैसे व्यक्ति की शक्ति बढ़ती है, उसकी नैतिकता की भावना कम होती जाती है। यह बात इस विचार पर प्रकाश डालती है कि जब लोगों को बहुत अधिक शक्ति और नियंत्रण दिया जाता है, तो वे भ्रष्ट हो सकते हैं। फिर वे व्यक्तिगत लाभ के लिए अपने पद का दुरुपयोग कर सकते हैं।
इससे उनके लिए नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं, जिनकी उन्हें सेवा करनी चाहिए, लॉर्ड एक्टन के इस बयान की कसौटी पर अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा चुनाव 2024 के उद्घोष ‘अबकी बार 405 पार’ को कसें, तो मोदी सरकार3। 0 कार्यकाल की तस्वीर साफ होने लगेगी। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पीएम मोदी समेत पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को हर बूथ पर पिछले चुनाव से 370 वोट अतिरिक्त जुटाने को कहा है। चुनावी गणित से देखें तो इससे केसरिया पार्टी अपने 370 सीटों के लक्ष्य को हासिल कर लेगी। साथ ही क्षेत्रीय स्तर पर लगातार गठबंधन करने से एनडीए का कुनबा 405 सीटों का हो जाएगा। असल खेल इसके बाद शुरू होगा।
संविधान संशोधन करने होंगे
मोदी 3.0 सरकार देश के साथ-साथ बीजेपी और संघ के वास्तविक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए काम करेगी, इसके लिए बीजेपी को तमाम संवैधानिक संशोधन करने होंगे। उनके लिए 405 का आंकड़ा भारी मददगार होगा। बीते दो कार्यकाल यानी 10 सालों में बीजेपी जिन मसलों को तीन-चौथाई बहुमत नहीं होने से हाथ नहीं लगा पा रही थी, उन सभी को तीसरे कार्यकाल में निपटाया जाएगा। हालिया स्थिति में भी बीजेपी दो-तिहाई के जादुई आंकड़े से संसद के दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित कर कानून बना सकती है, फिर उन प्रस्तावों को सभी राज्यों में पारित कराना होता है।
ऐसे में 405 लोकसभा में और राज्य सभा में 117 का आंकड़ा संसद संयुक्त सत्र में केसरिया पार्टी को मनभावन मसलों को पारित कराने की जादुई शक्ति देगा। गौरतलब है कि अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी समुदायों को लेकर संविधान में अलग अलग प्रावधान किए गए हैं। संविधान में सुधार की आड़ में इन्हें बदलने के लिए तीन-चौथाई बहुमत होना चाहिए। यह काम संसद का संयुक्त सत्र करेगा, जिसमें जरूरत के लिहाज से प्रस्ताव पारित करा लिए जाएंगे।
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CAA लागू करने की हुंकार
- गृह मंत्री अमित शाह पहले ही हुंकार भर चुके हैं कि आम चुनाव से पहले देश भर में सीएए लागू हो जाएगा। इसके अलावा जनसंख्या नियंत्रण कानून, हिंदू राष्ट्र घोषित करने जैसे एजेंडा अभी बाकी हैं, जिन्हें धार देने के लिए पार्टी संगठन से लेकर संघ और उसकी अनुषांगिक ईकाईयां विगत लंबे समय से काम कर रही है, अयोध्या में राम मंदिर के बाद काशी-मग्रा भी एजेंडे में है, जिस पर हिंदू वर्शिप एक्ट को किनारे लगा आगे बढ़ना आसान हो जाएगा।
- इसके अलावा न्यायपालिका में सुधार लाने का भी बड़ा काम है। निर्वाचन आयोग की नियुक्तियों की प्रक्रिया से सर्वोच्च न्यायालय को लगभग बाहर कर एक कदम तो साथ ही लिया गया है। अब कोलेजियम व्यवस्था को रद्द करने के लिए भी तीन-चौथाई की ताकत चाहिए होगी। ऐसे में कोलकाता हाईकोर्ट के जज अभिजीत गंगोपाध्याय का त्यागपत्र देना और फिर केसरिया पार्टी में शामिल होने के निहितार्थ आसानी से समझे जा सकते हैं। अभी आम आदमी से लेकर बड़े विधायी मसले को सर्वोच्च न्यायालय की आस रहती है। इलेक्टोरल बांड को सुको द्वास रद करना इसका एक ज्वलंत उदाहरण है।
- न्यायपालिका में सुधार के बाद संवैधानिक तौर पर स्वायत्त और अधिकारसंपन्न संस्थाओं का नंबर आएगा। सीबीआई, ईडी तो हालिया दौर में वैसे ही राजनीतिक कठपुतली करार दी जा चुकी हैं। तीन-चौथाई बहुमत के बाद उन पर नकेल कसना और भी आसान होगा। सत्तारूढ़ दल लोकतंत्र के दो स्तंभ क्रमशः कार्यपालिका और विधायिका पर नियंत्रण के साथ-साथ कथित चौथे स्तंभ यानी मीडिया पर भी लगभग कब्जा हो चुका है। शेष एक बचता है जिस पर नियंत्रण की कवायद है। ऐसी एकाधिकारवादी शासन में विपक्ष को सतर्क और जनता का जागरूक रहना होगा। हो जाती है, विपक्ष की भूमिका यहां न सिर्फ बढ़ जाती है, बल्कि कहीं अधिक जवाबदेही की भी हो जाती है – निहार रंजन सक्सेना