हाल के दशकों में शायद यह पहला ऐसा मौका है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने न सिर्फ सार्वजनिक रूप से अपने स्वयंसेवकों को आगामी लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Elections 2024) में सौ फीसदी मतदान संभव कराने की जिम्मेदारी सौंपी है, बल्कि पहली बार ठीक आम चुनावों के पहले सारे राजनीतिक सवालों के सीधे और साफ जवाब दिए हैं। संघ के फिर से 3 वर्षों के लिए सरकार्यवाह चुने गए दत्तात्रेय होसबले ने कहा कि चुनावी बॉन्ड एक प्रयोग था और भविष्य बताएगा कि यह प्रयोग भों सही था या नहीं! संघ राजनीतिक पार्टियों को यह ब्दी बताने की कोशिश भी कर रहा है कि आखिर उसके लिए 2024 के आम चुनाव इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं?
विपक्षी गठबंधन इंडिया में शामिल कई राजनीतिक पार्टियों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अगर वे सत्ता में आती हैं तो त्री देश में जातिगत जनगणना को हर हाल में संभव बनाएंगी। राहुल गांधी तो इसे पिछले काफी दिनों से अपनी मुख्य चुनावी रणनीति के रूप प्रस्तुत किया है। आरएसएस इसे गंभीरता से ले रहा है। वह नहीं चाहता आजादी के इस अमृतकाल में विपक्षी पार्टियां जीतकर देश को जातियों की महत्वाकांक्षा के दलदल में फंसा दें।
इसलिए आरएसएस सुनिश्चित करना चाहता है कि न सिर्फ लोकसभा चुनाव में भाजपा जीते, अपितु उसकी यह कोशिश है कि भाजपा अपनी घोषणा के मुताबिक 400 से ज्यादा सीटों से जीते। अगर वह ऐसा कर लेती है तो आरएसएस के कई घोषित- अघोषित एजेंडे को भी संभव बनाया जा सकता है। 27 सितंबर 1925 को डॉ। केशव बलिराम हेडगेवार ने आरएसएस की स्थापना की थी, इसलिए अगला साल आरएसएस का शताब्दी वर्ष है और वह कतई नहीं चाहता कि इस शताब्दी वर्ष में केंद्र में किसी और की सत्ता हो, जिससे उसे अपने मनपसंद आयोजनों को लेकर कई तरह की बाधाएं झेलनी पड़ें। ने अपने शताब्दी वर्ष में न सिर्फ आरएसएस कई महत्वपूर्ण आयोजन करना में चाहता है, बल्कि वह नये सिरे से अगले कुछ दशकों के लिए देश का कि एजेंडा सेट करना चाहता है।